भारत में हिंदी की दुर्दशा।

कभी आपको चीन जाने का मौका मिले तो वहाँ आप पाएँगे कि चीन के लोग चीनी भाषा में ही अपने सारे दैनिक काम करते हैं,आप जर्मनी चले जाओ वहाँ जर्मन में सारे काम होते हैं। इसी तरह फ्रांस में फ्रेंच,ब्रिटेन में ब्रिटिश और यहाँ तक कि जापान में भी सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में अपनी राष्ट्रीय भाषा जैपनिज का प्रयोग होता है आप पाकिस्तान चले जाओ आपको हर जगह उर्दू में पोस्टर नजर आएंगे।

लेकिन एक हमारा देश भारत ही है जहाँ सब अपनी मातृभाषा हिंदी को छोड़कर अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं सरकारी दफ्तरों में काम अंग्रेजी में, प्राइवेट दफ्तरों में अंग्रेजी,इंजीनियरिंग में‌ अंग्रेजी,मैडिकल में अंग्रेजी यहाँ तक कि हर जगह इंटरव्यू में भी अंग्रेजी।

अब थक अब जो बच्चा जन्म से ही हिंदी के वातावरण में पला बड़ा हो वो लाख कोशिश कर ले लेकिन अंग्रेज नही बन सकता और इस समाज के डर से अगर वो दो चार लाइनें अंग्रेजी की सीख कर कहीं बोल दे तो फिर यही लोग उसे ताने मारेंगे अबे तु तो बहुत बड़ा अंग्रेज हो गया है।

बड़ी अजीब विडंबना है हमारे देश की अंग्रेज तो चले गये पर अंग्रेजी छोड़ गये।

 

 

 

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