अशिष्ट होती युवा पीढ़ी और नैतिक शिक्षा की जरूरत।

दोस्तों आज हमारे देश की युवा पीढ़ी अशिष्ट क्यों होती जा रही है इस पर गंभीर मंथन की जरुरत है।आज किसी से यह पूछा जाए कि आपका लक्ष्य क्या है तो वह यही कहता है कि पैसा। उसको पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने की ललक उनमें है। चाहे वह गलत रास्ते अपनाकर ही क्यों न पूरी करनी पड़े।

आज की युवा पीढ़ी तो पागल हाथी की तरह नैतिकता व संस्कारों को भुलाकर अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को रौंदते हुए चली जा रही है। वह इस बात से बेखबर हैं कि जब भी जमीन पर गिरेंगे तो क्या हाल होगा। ऐसा सिर्फ नैतिक मूल्यों की कमी के कारण ही हो रहा है

युवाओं का रुष्ठ और रूखा व्यवहार, बड़ों के प्रति अनादर, कुतर्क व मनमानी यह सब दर्शाता है कि युवाओं में नैतिक मूल्यों का स्तर किस हद तक गिर चुका है।

कितनी अजीब बात है कि यह सब दशकों के एक छोटे से अंतराल में हो गया।आज से कुछ दशक पहले अपने से बड़ों का आदर करना व उन्हें उचित प्यार देना अपना कर्तव्य माना जाता था। लोग मिलनसार थे और रिश्तों में गर्माहट थी, लेकिन अब यह कहते हुए शर्म महसूस होती है कि जिन माता-पिता ने हमें बड़ा कर काबिल बनाया, वे ही बच्चों को बोझ लगने लगे हैं।

आज न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो यह दर्शाते हैं कि युवा वर्ग खुद में नैतिक मूल्यों को कितना गिरा चुके हैं। दुख तो इस बात पर होता है कि शिष्टाचार, संस्कार व नैतिकता की उन्हें पहचान ही नहीं और न ही वह इसको मानने को तैयार हैं।

अशिष्टता के लिए हम युवा पीढ़ी को भी पूरी तरह दोषी नहीं ठहरा सकते इसके लिए परिवार, सामाजिक वातावरण व पड़ोस आदि भी जिम्मेदार हैं। जब बच्चा पैदा होता है तो उसकी परवरिश का जिम्मा परिवार पर होता है।

 

तीन साल तक बच्चे को ये होश नहीं होता है और जब वह संस्कार, नैतिकता व शिष्टता के बारे में जानने योग्य होता है तो उसे स्कूल भेजा जाता है। उसके बाद वह ट्यूशन पढ़ने के लिए चला जाता है। जब तक वह माता-पिता के पास आता है तो थककर सोने के लिए चला जाता है। अभिभावक कुछ पूछने की कोशिश भी करें तो वह यह कहकर टाल देता है कि अभी मैं बहुत थक चुका हूँ ।

दूसरी सुबह फिर वही रूटीन शुरू हो जाती है। बच्चा क्या कर रहा है, क्या पढ़ व सीख रहा है, हमें मालूम ही नहीं होता। समय के साथ वह इतना बड़ा हो जाता है कि वह संस्कारविहीन हो जाता है। शिष्टाचार की उससे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।

आज लोगों के पास पैसा तो काफी हो गया है, लेकिन जिसके लिए कमाया वह हमारी सोच के अनुसार कुछ नहीं कर रहा। जब बच्चे को हमारे साथ की जरूरत थी तो हम पैसे के पीछे भागते रहे और संस्कार, शिष्टाचार व नैतिकता नाम की चीज उसे मिल ही नहीं पाई।

इंसान के लिए नैतिकता बहुत जरूरी है। समाज में व्यक्ति 2 चीजों से पहचाना जाता है। पहला है ज्ञान और दूसरा है उसका नैतिक व्यवहार। इंसान के बेहतर डेवलपमेंट के लिए यह दोनों ही अति आवश्यक है। अगर ज्ञान सफलता की चाबी है तो नैतिकता सफलता की सीढ़ी। एक के बिना दूसरा अधूरा है।

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