विवाह जैसा पवित्र बंधन और आधुनिक समाज


आजकल होने वाली शादियों में एक लेटेस्ट फैशन सा चल पड़ा है जो बहुत ही जोर पकड़ता जा रहा है। शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर पक्ष की तरफ से लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं,जिससे कि दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है,लाख कोशिशों के बावजूद भी जब वो दूल्हे के गले में वरमाला नहीं डाल पाती तो फिर वधु पक्ष के लोग दुल्हन को गोद में उठा लेते है और फिर जैसे-तैसे वरमाला कार्यक्रम का सम्पन्न हो पाता है लेकिन आखिर ये सब क्यों? हम अपने विवाह के पवित्र समारोह में ये सब करके आखिर क्या साबित करना चाहते हैं?

 

एक तरफ हम जहाँ विवाह के माध्यम से पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं और दूसरी तरफ इन संबंधों का मज़ाक बना रहें हैं। आखिर क्यों हम अपनी जीवनसंगिनी को चार -पाँच सौ लोगों के बीच उपहास का पात्र बनाकर रख देते हैं, ये कोई दंगल या अखाड़े का मैदान नही है है जहाँ कोई प्रतिस्पर्धा हो रही है बल्कि ये विवाह का पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है, हिन्दू धर्म के अनुसार विवाह एक पवित्र बंधन है, दो परिवारों के जोड़ने वाला पवित्र संस्कार है। कृपया इसको मजाक ना बनने दे।

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