भारत की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था इतनी बेकार हो चुकी है कि ये अपने पीछे बेरोजगारों की फौज खड़ी करती जा रही है। हम अपने बच्चों पर बचपन से लेके जवानी तक लाखों रुपए उनकी एजुकेशन मे उड़ा देते हैं उसे DPS में पढ़ाते हैं B-Tech कराते हैं फिर MBA कराते हैं इसके बाद भी उसे बाद भी उसे क्या मिलता है एक टुच्ची सी नौकरी जो उसे खुद को पसंद नही होती मतलब ROI (return on investment) बिल्कुल 0। ये वही हालात हैं जैसा आज की तारीख मे कोई कम्पनी शुरुआत से लेके अंत तक घाटे मे चलती रही और फिर बंद हो गयी।
100 मे से 90 % बच्चे सारी जिंदगी उतना भी नही कमा पा रहे जितना कि उनके माँ-बाप ने उनकी शिक्षा पर खर्च किया है इतनी महान शिक्षा व्यवस्था है भारत की । अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में बच्चे मॉं-बाप का बोझ नही बल्कि मॉं-बाप को बच्चों का बोझ उठाना पड़ेगा और बच्चे बुढ़ापे में मॉं-बाप का सहारा नही बल्कि बोझ बन जाएंगे।
तो आखिर सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को कैसा होना चाहिए?
पहली कक्षा से लेकर पाँचवी कक्षा तक बच्चों का मस्तिष्क बड़े कोमल स्वभाव का होता इस उम्र में हम उन्हें जैसा आचरण सिखाएंगे वो उनकी सारी जिंदगी को प्रभावित करता है इसलिए इस उम्र में हमें अपने बच्चों को आचार विचार और व्यव्हार की शिक्षा देनी चाहिए जिससे उनमे अच्छे संस्कारों का समावेश हो सके । इस शिक्षा के अंतर्गत उन्हें अपने माता-पिता तथा अपने से बड़ों लोगों का आदर और मान सम्मान करना सिखाना चाहिए।
दूसरे चरण की शिक्षा के अंतर्गत यानि छठी क्लास से लेकर दसवीं तक उन्हें सामान्य शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जो जीवन में उनके काम आये जैसे जोड़,घटा गुणा,भाग, Trigonometry वगैरह ।
हमारे जीवन तीसरे स्तर की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है जिसे हम स्किल बेस्ड एजुकेशन भी कह सकते हैं अर्थात रोजगार पूरक शिक्षा हर व्यक्ति हर काम को करने में अच्छा हो ये जरूरी नहीं है लेकिन एक काम में वो जरूर मास्टर होता है जरुरत होती है तो बस उसे तरासने की ।
इस स्तर की शिक्षा में हमें बच्चे को अपने अंदर छिपे इस टैलेंट को पहचानने और उसी में उसे अपना करियर बनाने के लिए उसे प्रेरित करना चाहिए अब कोई गाना गाने में अच्छा होता है तो किसी को गिटार बजाना किसी को क्रिकेट खेलना अच्छा लगता है तो किसी को बैडमिंटन बस उसके इसी इंट्रेस्ट को पहचान कर हमें उसको इसी फील्ड में उसे पास कर देना ना कि बारहवीं में फेल ।