परिवर्तन अथवा बदलाव का अर्थ और उनके प्रकार (Meaning of Change & Their Types)
बदलाव तीन प्रकार के होते हैं
1. आध्यात्मिक
2. सामाजिक
3. राजनीतिक
आध्यात्मिक बदलाव
आध्यात्मिक बदलाव का मतलब होता है स्वयं मे बदलाव। जब कोई व्यक्ति स्वयं को जानने की कोशिश में लग जाता है और उसी कोशिश के परिणाम स्वरुप अपने अंदर या फिर अपनी कुछ विशेष आदतों बदलाव लेकर आता है तो ऐसे बदलाव या फिर परिवर्तन को हम आध्यात्मिक बदलाव कहते हैं।
आध्यात्म का सीधा सा अर्थ है स्वयं को जानना, और स्वयं को जानने के लिए आपको खुद से ये तीन सवाल पूँछने होगें
1.मै कौन हूँ ?
2.कहाँ से आया हूँ ?
3.मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
जब तक किसी भी व्यक्ति को ये पता नही होगा कि मैं असल में हूँ कौन, कहाँ से आया हूँ और मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है तब वह अपने अंदर कोई भी बदलाव नही ला सकता।
जब तक कोई व्यक्ति स्वयं को जानने की कोशिश नही करता तक तक वह समाज में भी कोई परिवर्तन नही ला सकता। यानि आध्यात्मिक बदलाव के बिना सामाजिक बदलाव असंभव है।
सामजिक बदलाव
सामजिक बदलाव का अर्थ है अपने आस-पास रहने वालों लोगों के जीवन मे परिवर्तन लेकर आना। जब कोई अपने जीवन के मकसद को पहचान लेता है और उसे पाने के लिए संघर्ष करना शुरू करता है तो सबसे पहले उसका साथ देने वाले उसके आस-पास के लोग ही होते हैं। जब वह अपने आस-पास समाज में रह रहे लोगों के लिए जीवन में बदलाव लेकर आता है, उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठाता है तो सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत होती है।
राजनितिक बदलाव
जब समाज में रह रहे लोग अपने अधिकारों के प्रति जागृत हो जाते हैं और अलग अलग समूह बनाकर अपनी माँगों के लिए आवाज़ उठाते हैं,संघर्ष करते हैं, विरोध प्रदर्शन करते हैं तो ये इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब उस क्षेत्र,देश अथवा प्रदेश के लोग राजनिति में बदलाव चाहते हैं।
अगर किसी भी देश की तरक्की देखनी हो तो आप वहाँ पहले ये देख लीजिये लोगों का सामाजिक स्तर कैसा है और दूसरा वहाँ का राजनीतिक माहौल कैसा है। अगर किसी देख में लोगों का रहन सहन का स्तर ऊँचा है,वहाँ लोग रूढ़िवाद से ज्यादा ज्ञान को महत्व देतें हैं तो फिर ये कह सकते हैं कि वो देश सामाजिक रूप से मजबूत है।
अब जाहिर सी बात है कि जिस देश के लोग ज्ञानी है वो अपने ऊपर अनपढ़ लोगों को शासन नहीं करने देंगे और इसलिए वहाँ की राजनीति भी मजबूत होगी। वहाँ की संसद में लोग वही लोग चुनाव जीतकर पहुंचेंगे जो ज्ञानी होगें और वहाँ की संसद से वही कानून पास होंगे जो जनता के हित में हों।
भारत जैसे विशाल देश जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है जहाँ अभी भी लोग ज्ञान से ज्यादा शादी और बच्चे पैदा करने को महत्व देतें हैं जहाँ कदम कदम पर समाज में रूढ़िवाद फैला हुआ है,अंधविश्वास है,धर्म के नाम पर पाखंड है,ढोंग है वहाँ आप ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उस देख की राजनीति मजबूत होगी।
जहाँ लोग स्वयं और अपने बच्चों की शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं। आप ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं वहाँ की संसद में जो लोग चुनकर पहुंचेंगे वे जनता के हित में कार्य करेंगे।
अगर किसी भी देश को तरक्की करनी है तो सबसे पहले वहाँ लोगों को अपनी सामाजिक स्थिति बदलनी पड़ेगी,रूढ़िवाद और,पाखंड से ज्यादा ज्ञान को महत्व देना पड़ेगा। जिस देश के लोग ज्ञानी होंगे वो निश्चित ही ऐसे लोगों को संसद में चुनकर भेजेंगे जो उनके सामान ही ज्ञानी हों तो उस देश की राजनीति सुधरेगी और फिर कानून भी उनके हितों को ध्यान में रखकर कानून ही बनाये जाएंगे।
कोई भी बदलाव चाहे फिर वो आध्यात्मिक हो,सामाजिक हो या फिर राजनीतिक बदलाव ही क्यों ना हो, उस देश में रहने वाले लोग ही ला सकते हैं। जब तक लोग स्वयं नहीं चाहेंगे,अपनी मांगों के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगे, संघर्ष नहीं करेंगे तब कुछ भी बदलने वाला नहीं है। ना तो समाज बदलने वाला है ना ही राजनीति और ना ही ये देश।