हमारे देश भारत में एक समय ऐसा था जब भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था। हमें दूसरे देशों से अनाज का आयात करना पड़ता था। भारत पाक युद्ध के समय अमेरिका ने भारत को अनाज निर्यात करने से मना कर दिया था और समय समय पर सूखे की वजह से देश में अनाज के भंडार में कमी आ गई थी। इसी को देखते हुए लाल बहादुर शास्त्री जी ने अनाज उत्पादन पर जोर देने और भारतीय सेना का मनोबल ऊंचा करने के लिए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था जिसके कारण हरियाणा,पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में खाद्यान्न उत्पादन में काफी वृद्धि हुई थी और भारत खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर बना।

लेकिन आज हमारे देश में किसानों की जो हालत है उसे देखकर हमें बड़ी शर्म महसूस होती हमारे देश का किसान बॉर्डर पर अपनी माँगो को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। एक किसान जो सारा दिन खेतों में खाली पेट अपना खून पसीना बनाने के बाद जो अन्न उगाता है उससे सारे देश का पेट भरता है लेकिन वो खुद इतना भी नहीं कमा पा रहा कि अपना और अपने पेट का परिवार भर सकें।

एक आम आदमी भी अगर आजकल सारा दिन किसी फैक्ट्री में काम करे तो वह दिन का कम से कम 500 रुपया तो कमा ही लेता है लेकिन किसान अगर 6 महीने भी अपने खेतों में काम करे तो इस बात की कोई गारंटी नही फसल की पैदावार सही होगी भी या नही। उसे अपनी खेती में लगाई गई लागत वसूल होगी भी या नहीं जिसका नतीजा ये होता है कि वो बैंको से लिया हुआ कर्जा समय से चुका नहीं पाता और मजबूरन उसे आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ता है।

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने किसानों की आत्महत्या को लेकर पिछले साल का डाटा जारी किया है इन आँकड़ों के साल 2022 में 11290 किसानों ने आत्महत्या की। अगर हम NCRB के साल 2021 के आँकड़ो पर नजर डालें तो साल 2021 में 10281 किसानों ने अपनी जान ली थी। अगर हम आँकड़ो पर गौर करें तो पाएंगे कि साल 2022 में इसमें 3.7 प्रतिशत की बृद्धि हुई है।

एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में रोजाना 154 किसान-मजदूर आत्महत्या कर रहें हैं जो सरकार और देश दोनों के लिए काफ़ी चिंताजनक है।

बड़ी अजीब विडंबना है हमारे देश में सरकार अम्बानी और अडानी जैसे बड़े उद्योगपतियों का करोडो का कर्जा माफ़ कर सकती है लेकिन एक किसान जो सारे देश का पेट भरता है सरकार उसका मात्र कुछ हजार का कर्जा माफ नही कर सकती।